हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने घोषणा की है कि प्रदेश सरकार ऑडिट प्रक्रियाओं में देरी को संबोधित करने के लिए एक नया एक्ट बनाएगी। इस एक्ट का उद्देश्य सरकारी विभागों और संस्थानों की वित्तीय पारदर्शिता को सुनिश्चित करना और ऑडिट के समय में सुधार लाना है।
सुक्खू ने कहा कि यह कदम वित्तीय निगरानी और सरकारी खर्चों की समीक्षा को अधिक प्रभावी बनाने के लिए उठाया जा रहा है, जिससे भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ी पर काबू पाया जा सके। नया एक्ट ऑडिट प्रक्रिया को सुसंगठित और पारदर्शी बनाने के लिए आवश्यक कानूनी ढांचा प्रदान करेगा, जिससे सरकारी योजनाओं और परियोजनाओं की सही तरीके से निगरानी हो सके।
इस ऐलान के बाद से सरकारी विभागों और अधिकारियों को समय पर ऑडिट रिपोर्ट प्रस्तुत करने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी, ताकि राज्य की वित्तीय स्थिति में सुधार हो सके और जनता को अधिक पारदर्शिता
मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने कांगड़ा को-ऑपरेटिव बैंक की वित्तीय स्थिति पर चर्चा करते हुए बताया कि पहले 35 प्रतिशत एनपीए (नॉन-परफॉर्मिंग एसेट्स) की दर अब घटकर 7 प्रतिशत रह गई है। उन्होंने पंचायती राज संस्थानों में कर्मचारियों की भर्ती के लिए विभाग से खाली पदों की संख्या मांगने की भी बात की। मुख्यमंत्री मंगलवार को नियम 130 के तहत सदन में चर्चा का जवाब दे रहे थे।
सुखविंदर सुक्खू ने बताया कि सभी शैक्षणिक संस्थानों का लोकल रिपोर्ट विभाग ऑडिट करता है और इसकी रिपोर्ट को लोकलेखा समिति के पास नौ महीने के भीतर आना अनिवार्य है। हालांकि, इस प्रक्रिया में अक्सर चार से पांच साल की देरी हो जाती है। सरकार इस देरी को रोकने के लिए एक नया एक्ट बनाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। नए एक्ट में लोकल ऑडिट के बाद रिपोर्ट को सरकार के पास भेजने और नकली ऋणों पर अंकुश लगाने के प्रावधान होंगे।
सदन में ऑडिट पर हुई बहस में विधायक संजय रतन ने कहा कि ऑडिट सरकार की एजेंसी के माध्यम से होना चाहिए और यूजर्स चार्जेज को विधानसभा के पटल पर प्रस्तुत किया जाना चाहिए। विधायक कुलदीप राठौर ने 2023 में लोकल फंड ऑडिट कमेटी के गठन की जानकारी दी, जबकि विधायक हंसराज ने भी चर्चा में भाग लिया।
इसके अतिरिक्त, विधायक विपिन परमार ने पालमपुर विश्वविद्यालय में करोड़ों रुपए के गेट की आलोचना की और केंद्र प्रायोजित योजनाओं के धीमे कामकाज और खाली पदों को भरने की जरूरत पर जोर दिया।