ढलान संरक्षण कार्य, जो कि पहाड़ी क्षेत्रों में अत्यंत आवश्यक है, अभी भी प्रशासनिक लालफीताशाही के जाल में फंसा हुआ है। स्थानीय लोग लंबे समय से इसकी मांग कर रहे हैं, लेकिन बार-बार प्रक्रियात्मक बाधाएं और समय की कमी इसे आगे बढ़ने नहीं दे रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर जल्द ही इस कार्य को पूरा नहीं किया गया, तो भूमि खिसकने और अन्य प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ सकता है। स्थानीय प्रशासन को चाहिए कि वह इस मुद्दे को प्राथमिकता दे और आवश्यक कदम उठाए, ताकि सुरक्षा सुनिश्चित हो सके और लोगों की चिंताओं का समाधान किया जा सके।
स्थानीय समुदाय और संबंधित एजेंसियों को मिलकर इस दिशा में काम करने की आवश्यकता है, ताकि जल्द से जल्द ढलान संरक्षण कार्य शुरू हो सके।
प्रदेश हाई कोर्ट ने रामपुर के नरोला गांव के निवासियों की सुरक्षा के लिए तत्काल कार्रवाई न होने पर गहरी चिंता व्यक्त की है। मुख्य न्यायाधीश एमएस रामचंद्र राव और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान कहा कि गांव को पत्थर गिरने के खतरे से बचाने के लिए ढलान संरक्षण कार्य अभी भी लालफीताशाही के जाल में फंसा है।
कोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वे ग्रामीणों की इस कठिनाई को हल करने के लिए दो सप्ताह के भीतर उचित कार्रवाई करें। कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित करने का आदेश दिया कि कोई ग्रामीण मुआवजे से वंचित न रह जाए। इसके लिए कोर्ट मित्र अधिवक्ता अभिषेक दुलटा को ग्रामीणों से संपर्क करने का निर्देश दिया गया।
यह मामला लुहरी विद्युत परियोजना के निर्माण से जुड़ा है, जहां अवैज्ञानिक तरीके से ब्लास्टिंग के कारण गांव में खतरा उत्पन्न हो गया है। कोर्ट ने जानकारी मांगी कि क्या कोई ग्रामीण अपने भवनों के नुकसान की एवज में मुआवजे से वंचित तो नहीं रह गया है, और यह जानकारी चार नवंबर तक प्रस्तुत करने का आदेश दिया है।