हिमाचल में कोचिंग के बिना कैसे निखारेंगी खेल प्रतिभाएं

बिना गुरु द्रोणाचार्य के एकलव्य की कल्पना नहीं की जा सकती। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश के युवा खिलाड़ी भी प्रशिक्षकों के बिना अपने सपनों को साकार करने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। प्रदेश भर में कोचों की कमी के कारण, एथलीट और अन्य खिलाड़ी निराशा का सामना कर रहे हैं। कई युवा खिलाड़ी खुद ही तैयारी करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कुछ ने अन्य राज्यों की ओर रुख कर लिया है। राज्य में केवल 45 कोच ही उपलब्ध हैं, जबकि 113 की आवश्यकता है। मुख्य कोचों की संख्या 11 में से 13 है, जबकि जूनियर कोचों के 100 पदों में से केवल 34 भरे हुए हैं। इस कमी के कारण खिलाड़ियों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है, जिससे करोड़ों रुपये की लागत से बने ट्रैक और कोर्ट भी सूने पड़े हैं। हिमाचल के कई जिलों में विभिन्न खेलों जैसे हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबाल, कुश्ती, और बैडमिंटन के लिए कोच उपलब्ध नहीं हैं, जिसके चलते खिलाड़ी मजबूरन अन्य राज्यों में प्रशिक्षण लेने को विवश हैं। खेल विभाग के निदेशक हितेश आजाद ने बताया कि कुछ जूनियर कोच पदों को जल्द ही भरा जाएगा और राज्य सरकार को कोचों की मांग के लिए पत्र लिखा गया है। जबकि केंद्र और राज्य सरकारें खेलों को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रही हैं, लेकिन कोचों की व्यवस्था न होने के कारण युवा प्रतिभाएं अन्य राज्यों की ओर जाने को मजबूर हैं। यदि संसाधनों का सही उपयोग किया जाए, तो ये खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं।

बिना गुरु द्रोणाचार्य के एकलव्य की कल्पना नहीं की जा सकती। इसी तरह, हिमाचल प्रदेश के युवा खिलाड़ी भी प्रशिक्षकों के बिना अपने सपनों को साकार करने में कठिनाई महसूस कर रहे हैं। प्रदेश भर में कोचों की कमी के कारण, एथलीट और अन्य खिलाड़ी निराशा का सामना कर रहे हैं। कई युवा खिलाड़ी खुद ही तैयारी करने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि कुछ ने अन्य राज्यों की ओर रुख कर लिया है।

राज्य में केवल 45 कोच ही उपलब्ध हैं, जबकि 113 की आवश्यकता है। मुख्य कोचों की संख्या 11 में से 13 है, जबकि जूनियर कोचों के 100 पदों में से केवल 34 भरे हुए हैं। इस कमी के कारण खिलाड़ियों को उचित मार्गदर्शन नहीं मिल पा रहा है, जिससे करोड़ों रुपये की लागत से बने ट्रैक और कोर्ट भी सूने पड़े हैं।

हिमाचल के कई जिलों में विभिन्न खेलों जैसे हॉकी, क्रिकेट, वॉलीबाल, कुश्ती, और बैडमिंटन के लिए कोच उपलब्ध नहीं हैं, जिसके चलते खिलाड़ी मजबूरन अन्य राज्यों में प्रशिक्षण लेने को विवश हैं।

खेल विभाग के निदेशक हितेश आजाद ने बताया कि कुछ जूनियर कोच पदों को जल्द ही भरा जाएगा और राज्य सरकार को कोचों की मांग के लिए पत्र लिखा गया है।

जबकि केंद्र और राज्य सरकारें खेलों को बढ़ावा देने के लिए अभियान चला रही हैं, लेकिन कोचों की व्यवस्था न होने के कारण युवा प्रतिभाएं अन्य राज्यों की ओर जाने को मजबूर हैं। यदि संसाधनों का सही उपयोग किया जाए, तो ये खिलाड़ी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना सकते हैं।

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