उत्तरी भारत के प्रसिद्ध बाबा बालक नाथ मंदिर, दियोटसिद्ध, में चढ़ाए जाने वाले रोट प्रसाद की गुणवत्ता पर कंडाघाट लैब की जांच ने गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। लैब रिपोर्ट के अनुसार, रोट का सैंपल स्वास्थ्य मानकों पर खरा नहीं उतरा और खाने लायक नहीं पाया गया।
यह खुलासा श्रद्धालुओं की आस्था के साथ-साथ स्वास्थ्य सुरक्षा को लेकर चिंताएं बढ़ा रहा है। लाखों भक्त रोट को प्रसाद मानकर ग्रहण करते हैं और इसे महीनों तक घरों में रखते हैं। सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि यह सैंपल देवाशिष्ठित कैंटीन से लिया गया था।
तिरुपति बालाजी से शुरू हुआ सवालों का दौर
सितंबर में तिरुपति बालाजी मंदिर के प्रसाद की गुणवत्ता पर सवाल उठने के बाद मंदिरों के प्रसाद की गुणवत्ता जांचने की मांग तेज हो गई। इसी क्रम में फूड एंड सेफ्टी विभाग की टीम ने अक्तूबर में दियोटसिद्ध मंदिर की कैंटीन और दुकानों से रोट के सैंपल लिए।
रोट प्रसाद के निर्माण पर सवाल
दियोटसिद्ध में लगभग 70-80 दुकानों में रोट प्रसाद बनाया जाता है। दुकानदारों का दावा है कि रोट एक महीने तक खराब नहीं होता, लेकिन इसकी कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं है। रोट के निर्माण में आटा, मैदा, डालडा या रिफाइंड तेल, चीनी और गुड़ का उपयोग होता है।
सवाल उठते रहेंगे
इस घटना ने मंदिरों के प्रसाद की गुणवत्ता और सुरक्षा मानकों पर चर्चा को नया आयाम दिया है। क्या मंदिर प्रशासन और दुकानदार प्रसाद के उच्च गुणवत्ता मानकों को सुनिश्चित करेंगे, यह देखना महत्वपूर्ण होगा।