हद है! आईजीएमसी में खुले में हो रही है ईसीजी, मरीजों की सुरक्षा पर सवाल

हिमाचल के सबसे बड़े अस्पताल में लापरवाही की हदें पार,

शिमला: इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (आईजीएमसी) में नए ओपीडी भवन के आपातकालीन विभाग में ईसीजी (ECG) टेस्ट की प्रक्रिया में गंभीर लापरवाही सामने आई है। मरीजों का ईसीजी टेस्ट बिना किसी क्यूबिकल या पर्दे के, खुले में किया जा रहा है, जिससे उन्हें न केवल असुविधा हो रही है बल्कि उनकी गोपनीयता भी प्रभावित हो रही है।

नए ओपीडी भवन के एमर्जेंसी और ट्रामा विभाग में रोजाना सैकड़ों मरीज इलाज के लिए आते हैं, और इस दौरान यहां अक्सर भारी भीड़ रहती है। हालांकि, अस्पताल प्रशासन ने मरीजों के लिए ईसीजी, सीटी स्कैन और एक्स-रे जैसी सुविधाएं नए भवन की तीसरी मंजिल पर उपलब्ध करवाई हैं, ताकि प्रदेशभर से आने वाले मरीजों को आपातकालीन स्थिति में यहां-वहां भटकने की समस्या न हो।

लेकिन, ईसीजी टेस्ट में हो रही यह लापरवाही अस्पताल की व्यवस्था पर गंभीर सवाल उठाती है। ईसीजी रूम में मरीजों का ईसीजी टेस्ट बिना पर्दा लगाए किया जा रहा है, जिससे मरीजों को असुविधाजनक स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। खासकर, गोपनीयता की कमी और खुले में चिकित्सा परीक्षण होने के कारण मरीजों की मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ सकता है।

ईसीजी टेस्ट का तरीका

ईसीजी (Electrocardiogram) एक सामान्य और तेज़ प्रक्रिया है, जिसके जरिए हृदय की विद्युत गतिविधि को मापा जाता है। इस टेस्ट में छाती, हाथ और पैरों पर इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं, जो दर्द रहित और सुई रहित होते हैं। इलेक्ट्रोड को ईसीजी मशीन से जोड़ा जाता है, जो हृदय की विद्युत गतिविधि को रिकॉर्ड करता है और इसे कागज पर प्रिंट कर देता है। इस पूरी प्रक्रिया में करीब तीन मिनट का समय लगता है।

मरीजों को हो रही परेशानी

आईजीएमसी के आपातकालीन विभाग में रोजाना 100 से अधिक मरीज इलाज के लिए आते हैं। इस दौरान, मेडिसिन, सर्जरी और ऑर्थो मरीजों का भी इलाज किया जाता है, और भीड़ के चलते मरीजों को अपनी बारी का इंतजार करना पड़ता है। इसके बावजूद, खुले में ईसीजी टेस्ट किए जाने से मरीजों को शारीरिक और मानसिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

आवश्यक सुधार की मांग

मरीजों और उनके परिवारवालों ने इस मामले को लेकर अस्पताल प्रशासन से तत्काल सुधार की मांग की है। ईसीजी टेस्ट के लिए गोपनीयता और सुरक्षा की व्यवस्था सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि मरीजों को असुविधा और मानसिक दबाव का सामना न करना पड़े। अस्पताल प्रबंधन को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इस तरह की लापरवाही से बचा जाए और मरीजों का उपचार पूरी सावधानी और गोपनीयता के साथ किया जाए।

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