मसरूर, हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में स्थित एक ऐतिहासिक और धार्मिक स्थल है, जो अपनी रॉक-कट वास्तुकला और अद्वितीय मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है। मसरूर मंदिर परिसर को “हिमालय का एलोरा” भी कहा जाता है। 8वीं शताब्दी में निर्मित यह मंदिर भारत की प्राचीन वास्तुकला और शिल्प कौशल का अद्भुत उदाहरण है।
मसरूर रॉक-कट मंदिर
यह मंदिर परिसर एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है, जिसमें 15 मंदिरों का समूह है। ये मंदिर भगवान शिव, विष्णु और देवी सरस्वती को समर्पित हैं। मुख्य मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। मंदिर की दीवारों पर की गई उत्कृष्ट नक्काशी और मूर्तियाँ इसकी भव्यता को दर्शाती हैं।
ऐतिहासिक महत्व
मसरूर मंदिरों का निर्माण भारतीय वास्तुकला के नागर शैली में किया गया है। ऐसा माना जाता है कि ये मंदिर पहले एक समृद्ध धार्मिक स्थल थे, लेकिन समय और प्राकृतिक आपदाओं के कारण इनकी महिमा खो गई। भूकंप से क्षतिग्रस्त होने के बावजूद, मंदिरों की संरचना आज भी पर्यटकों और इतिहासकारों को आकर्षित करती है।
भूगोल और परिवेश
मसरूर मंदिर परिसर धौलाधार पर्वतमाला की पृष्ठभूमि में स्थित है, जो इसकी सुंदरता को और भी बढ़ा देता है। यहाँ एक जलाशय भी है, जिसमें मंदिरों की छवि अद्भुत प्रतिबिंबित होती है। यह स्थान शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव प्रदान करता है।
पर्यटन और गतिविधियाँ
मसरूर मंदिर एक प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है, जहाँ इतिहास और वास्तुकला के प्रेमी बड़ी संख्या में आते हैं। यहाँ आने वाले पर्यटक रॉक-कट कला का अनुभव कर सकते हैं और आसपास की प्राकृतिक सुंदरता का आनंद ले सकते हैं।
कैसे पहुँचें?
मसरूर मंदिर कांगड़ा शहर से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहाँ तक सड़क मार्ग से आसानी से पहुँचा जा सकता है। निकटतम रेलवे स्टेशन पठानकोट है, जो 70 किलोमीटर दूर है।
निष्कर्ष
मसरूर का रॉक-कट मंदिर हिमाचल प्रदेश का एक छिपा हुआ रत्न है। इसकी खोई हुई महिमा और अद्वितीय वास्तुकला आज भी इसे एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक धरोहर बनाती है। यदि आप इतिहास, वास्तुकला और आध्यात्मिकता में रुचि रखते हैं, तो मसरूर अवश्य जाएँ।