3100 स्कूल सिंगल टीचर, कैसे बढ़ेगी एन्रोलमेंट? प्रारंभिक-उच्च शिक्षा विभाग में इतने पद खाली

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राज्य के लगभग 3100 स्कूलों में केवल एक शिक्षक द्वारा पढ़ाई कराई जा रही है, जिससे शिक्षा की गुणवत्ता पर सवाल उठ रहे हैं। एक शिक्षक के सहारे बच्चों की शिक्षा में दिक्कतें आ रही हैं, जिससे एन्रोलमेंट बढ़ाने में भी मुश्किल हो रही है। इसके बावजूद, प्रारंभिक और उच्च शिक्षा विभाग में कई पद खाली हैं, जिनकी भरपाई के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इन विभागों में कई शिक्षक, प्रधानाध्यापक और अन्य पद खाली पड़े हैं। इन खाली पदों को भरने से जहां शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होगा, वहीं स्कूलों में बच्चों की संख्या भी बढ़ने की उम्मीद जताई जा रही है।

एक तरफ शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में अचानक गिरते एडमिशन को लेकर चिंतित है, तो दूसरी तरफ खाली पद कुछ और ही कहानी बयां कर रहे हैं। पिछले महीने आयोजित क्वालिटी एजुकेशन वर्कशॉप में प्रारंभिक शिक्षा विभाग ने यह आंकड़ा प्रस्तुत किया था कि प्रदेश के 180 सरकारी स्कूल बिना टीचर के चल रहे हैं, और 3100 स्कूलों में एकमात्र शिक्षक पर जिम्मेदारी है। अगर प्रारंभिक और उच्च शिक्षा विभाग के पदों को मिलाकर देखा जाए, तो लगभग 27,000 पद अभी भी खाली हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि सरकारी स्कूलों में एनरोलमेंट कैसे बढ़ेगी।

शिक्षा विभाग ने एनरोलमेंट बढ़ाने और प्राइवेट स्कूलों को कड़ी प्रतिस्पर्धा देने के लिए प्री-प्राइमरी कक्षाएं शुरू की थीं। तीन हजार से अधिक सरकारी स्कूलों में 64,000 बच्चों को दाखिला भी मिल चुका है, लेकिन आज तक इन कक्षाओं के लिए कोई शिक्षक नहीं नियुक्त किया गया। यह काम जेबीटी शिक्षक ही कर रहे हैं। राज्य सरकार ने 6297 प्री-प्राइमरी टीचर्स की भर्ती के लिए स्टेट इलेक्ट्रॉनिक्स डिवेलपमेंट कारपोरेशन को जिम्मेदारी दी थी, लेकिन हाई कोर्ट में स्टे होने के कारण यह प्रक्रिया फिलहाल रुकी हुई है।

पिछले दो वर्षों में 2151 टीजीटी और जेबीटी की बैचवाइज भर्ती की गई, लेकिन 2800 पद अब भी कमीशन के जरिए नहीं भरे जा सके। शास्त्री के 494 और पीईटी के 870 पद हाई कोर्ट में चल रहे मामलों के कारण खाली हैं। 2024-25 में सरकारी स्कूलों में पहली कक्षा में केवल 22,146 बच्चों ने प्रवेश लिया, जबकि निजी स्कूलों में 46,426 बच्चों का एडमिशन हुआ। इस प्रकार, सरकारी स्कूलों में कुल 68,572 एडमिशन में से सिर्फ 32 प्रतिशत बच्चों का दाखिला हुआ है, जो अब तक का सबसे कम आंकड़ा है।

राज्य सरकार शिक्षा विभाग में एक लाख से अधिक कर्मचारियों के साथ सबसे बड़ा सरकारी महकमा है। इसमें 86,476 पद प्रारंभिक शिक्षा विभाग में और 50,327 पद उच्च शिक्षा विभाग में हैं, लेकिन इनमें से 27,000 से अधिक पद खाली हैं। अगर सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार नहीं हुआ और अभिभावकों का भरोसा नहीं मिला, तो इसका असर रोजगार और सामाजिक विकास पर भी पड़ेगा।

हिमाचल प्रदेश का स्कूल साइज और शिक्षक-छात्र अनुपात (पीटीआर) काफी बेहतर है। जबकि चीन में औसतन एक स्कूल में 565 बच्चे हैं और अमेरिका में यह संख्या 526 है, वहीं भारत में यह संख्या 166 बच्चों की है, जबकि हिमाचल में सरकारी स्कूलों का औसत आकार केवल 50 बच्चों का है। इसके बावजूद, गुणवत्ता की कमी बनी हुई है। प्रदेश के 72 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में 30 से कम बच्चे हैं, और 83 प्रतिशत मिडल स्कूलों में भी एनरोलमेंट 30 से कम है। पिछले दो वर्षों में 1054 स्कूलों को जीरो एनरोलमेंट के कारण डी-नोटिफाई किया गया है।

 

 

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