इस वर्ष चेरापूंजी, गुवाहाटी, असम और बंगलुरु में अदरक के बंपर उत्पादन ने हिमाचल प्रदेश के शिलाई उपमंडल की बेला वैली के किसानों को मायूस कर दिया है। एशिया में अदरक के लिए प्रसिद्ध इस क्षेत्र के किसानों की अदरक और सौंठ से होने वाली आमदनी पर गंभीर असर पड़ा है। अदरक के दामों में भारी गिरावट के कारण किसान अपनी लागत तक निकालने में असमर्थ हो रहे हैं। अदरक एक्सपोर्टर और आढ़तियों का कहना है कि इस बार हिमाचल का अदरक पाकिस्तान, बांग्लादेश, अफगानिस्तान और तालिबान जैसे देशों में निर्यात नहीं हो पाया, जिससे स्थानीय बाजार में इसकी कीमतों में भारी गिरावट आई है।
बेला वैली के किसानों को इस बार प्रति 40 किलो अदरक के लिए सिर्फ 1200 से 1600 रुपए मिल रहे हैं, जबकि पिछले साल यही अदरक 1800 से 2200 रुपए प्रति 40 किलो के भाव से बिका था। किसानों का कहना है कि इस गिरावट के कारण उनकी नकदी फसल से जुड़ी उम्मीदें धराशायी हो गई हैं। अदरक की खेती से उनकी आजीविका चलती है, और इसका इस्तेमाल परिवार की जरूरतों के साथ नए कामों में भी होता है। लेकिन इस बार स्थिति विपरीत है, और 6000 से 9000 रुपए प्रति 40 किलो के भाव से खरीदा गया बीज भी किसानों को भरपाई नहीं कर पा रहा है।
गिरीखंड क्षेत्र के प्रगतिशील किसान जैसे गुलाब सिंह नौटियाल, कंवर शर्मा और सुरजीत सिंह ने बताया कि इस क्षेत्र में 60% किसान अदरक से सौंठ बनाते हैं, जबकि 40% बीज के लिए इसे बेचते हैं। दाम गिरने से सौंठ और बीज दोनों की कीमतें प्रभावित हो रही हैं। कृषि विश्वविद्यालय धौलाकुआं के सब्जी विशेषज्ञ डॉ. पंकज मित्तल के अनुसार, अदरक के गिरते दामों ने किसानों को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। पिछले वर्ष अदरक के बेहतर दामों के चलते किसानों ने महंगे बीज खरीदे थे, लेकिन इस बार उनकी लागत भी पूरी नहीं हो पा रही है।
बेला वैली के किसान इस बार की अदरक की फसल के दाम गिरने से गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहे हैं। किसानों का कहना है कि उन्हें अदरक की खेती से न केवल दैनिक जरूरतें पूरी करनी होती हैं, बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और अन्य परिवारिक खर्चों के लिए भी यही मुख्य आय का स्रोत है। पिछले साल अच्छे दाम मिलने के कारण किसानों ने बड़े पैमाने पर अदरक की फसल लगाई और महंगा बीज खरीदा था। लेकिन इस साल बाजार में दाम गिरने से उनकी सारी उम्मीदें टूट गई हैं। स्थानीय मंडियों में अदरक के औने-पौने दाम मिलने के कारण किसान निराश और हताश हैं। वे अब सरकार और संबंधित विभागों से मदद की उम्मीद कर रहे हैं ताकि उनके घाटे की भरपाई हो सके और अगली फसल के लिए प्रोत्साहन मिल सके।