हिमाचल प्रदेश में पहली बार 20 सडक़ें आधुनिक एफडीआर तकनीक से बनने जा रही हैं

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हिमाचल प्रदेश में पहली बार 20 सडक़ों के निर्माण में Recycling Technology का उपयोग किया जाएगा। इस तकनीक से पुराने सडक़ों से निकलने वाले मटेरियल का पुन: उपयोग कर नई सडक़ों का निर्माण किया जाएगा। इस प्रक्रिया से निर्माण लागत में कमी आएगी और पर्यावरण पर भी सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।

एफडीआर तकनीक से सडक़ निर्माण

हिमाचल प्रदेश में पहली बार 20 roads को modern FDR (Full Depth Reclamation) तकनीक से बनाया जाएगा। इस तकनीक के तहत सडक़ निर्माण के लिए कोई नया material नहीं डाला जाएगा। इसके बजाय, old material का पुन: उपयोग किया जाएगा, जो सडक़ निर्माण के दौरान निकला है। इसके बाद, एक special chemical layer और geo-matting डाली जाएगी, जिससे सडक़ की मजबूती बढ़ेगी और cracks नहीं आएंगे। इस प्रक्रिया से सडक़ों की longevity बढ़ेगी और इन पर vehicles 18 साल तक तेज़ दौड़ेंगे।

मंडी और कुल्लू में निर्माण कार्य

Mandi district में 16 सडक़ें और Kullu district में 4 सडक़ें इस तकनीक से बनेंगी। Ganpati Road से Koon Kattar तक बनने वाली 20 km लंबी सडक़ के निर्माण के लिए सोमवार को trial लिया गया। Construction team और PWD द्वारा ट्रायल सफल होने के बाद, DKS Construction Company ने इस सडक़ का निर्माण शुरू कर दिया है। इस सडक़ के निर्माण पर लगभग 16 crore rupees खर्च किए जाएंगे।

काम की प्रक्रिया

Nitish Sharma, Director of DKS Company, ने बताया कि कंपनी ने special machines खरीदी हैं, जो इस सडक़ निर्माण में मदद करेंगी। सबसे पहले, old material (जैसे asphalt, footpath material) को crushed और mixed किया जाता है। फिर cement और chemical powder का मिश्रण सडक़ पर डाला जाता है, जिससे सडक़ की मजबूती और स्थायित्व बढ़ता है। इस प्रक्रिया से सडक़ निर्माण की cost कम होती है और strength बढ़ती है।

एफडीआर तकनीक के लाभ

FDR technology एक ऐसी technique है, जिसमें पुरानी सडक़ को recycle किया जाता है। इसमें पुरानी सडक़ की gravel और अन्य सामग्री का ही पुनः उपयोग किया जाता है, और new materials का उपयोग नहीं किया जाता। यह पर्यावरण के लिए फायदेमंद है क्योंकि mining की आवश्यकता नहीं पड़ती और sustainable development की दिशा में एक कदम बढ़ाया जाता है। इस तकनीक से road construction में भी cost-effectiveness और environmental impact में सुधार होता है।

इससे पहले अन्य राज्यों में भी हुआ था इस्तेमाल

इस तकनीक का पहले Uttar Pradesh, Madhya Pradesh जैसे बड़े राज्यों में उपयोग किया जा चुका है और अब इसे Himachal Pradesh में भी implemented किया जा रहा है।

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