डा. राजेंद्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय टांडा अस्पताल में हिमकेयर तथा आयुष्मान के अंतर्गत मुफ्त कैश लैस उपचार की सुविधा होने के बावजूद मरीजों को प्राइवेट केमिस्टों की दुकानों से महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं।
टीएमसी में मुफ्त इलाज की सुविधा लेकिन दवाइयां नहीं मिल रहीं
डॉ. राजेंद्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय (टीएमसी) टांडा में Himcare और Ayushman के तहत कैशलेस उपचार की सुविधा उपलब्ध है। इसके बावजूद मरीजों को प्राइवेट केमिस्टों से महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं। सरकारी अस्पतालों में मुफ्त इलाज की बातें धरातल पर सच नहीं हो रही हैं।
आयुष्मान और हिमकेयर में कैशलेस सुविधा का दावा
हेल्थ कार्ड धारकों को तीन साल तक 5 लाख रुपये तक का cashless treatment मुहैया कराया जाता है। लेकिन ऑपरेशन के लिए जरूरी सामान और दवाइयों के लिए मरीजों को नकद भुगतान करना पड़ रहा है।
डॉक्टर प्राइवेट दुकानों की दवाइयां क्यों लिख रहे हैं?
सरकारी अस्पतालों में सभी जरूरी दवाइयां मुफ्त उपलब्ध होने का दावा किया जाता है। बावजूद इसके, डॉक्टर मरीजों को प्राइवेट केमिस्ट से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर कर रहे हैं। इससे मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ रहा है।
कैशलेस सुविधा के नाम पर आर्थिक बोझ
हाल ही में राज्य सरकार ने कैंसर रोगियों के लिए 42 दवाइयों का एक सेट और कुछ इंजेक्शन मुफ्त उपलब्ध कराने की घोषणा की थी। Trastuzumab जैसे इंजेक्शन, जिसकी कीमत 40,000 रुपये है, मुफ्त दिए जाने थे। लेकिन असल में मरीजों को महंगी दवाइयां खरीदनी पड़ रही हैं, जिससे कैशलेस सुविधा का उद्देश्य विफल हो रहा है।
छह जिलों के मरीजों की जिम्मेदारी टांडा पर
टीएमसी टांडा प्रदेश के दूसरे बड़े अस्पताल के रूप में चंबा, मंडी, ऊना, हमीरपुर, कुल्लू और कांगड़ा जिलों के मरीजों की सेवा करता है। हर दिन यहां OPD में 2,000 से 3,000 मरीज आते हैं। इनमें से अधिकांश मरीज दवाइयों और ऑपरेशन के सामान के लिए प्राइवेट दुकानों पर निर्भर रहते हैं।
जरूरत है सुधार की
सरकार को सुनिश्चित करना होगा कि सरकारी डिस्पेंसरियों में सभी दवाइयां उपलब्ध हों और मरीजों को किसी भी हालत में बाहर की दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर न किया जाए। इससे न केवल गरीब मरीजों को राहत मिलेगी, बल्कि सरकारी योजनाओं का उद्देश्य भी सफल होगा।