मंडी जिले की बल्ह तहसील के मल्हणु गांव के पांच परिवारों ने शिमला में विधानसभा याचिका समिति के अध्यक्ष के समक्ष याचिका दायर कर 1979 में उन्हें दिए गए वादे के अनुसार जमीन पर मालिकाना हक मांगा है। ब्यास सतलुज लिंक परियोजना से विस्थापित हुए इन परिवारों को 45 वर्ष बीतने के बाद भी भूमि का मालिकाना हक नहीं मिल सका है।
मंडी के विस्थापित परिवारों का 45 साल बाद भी नहीं मिला भूमि पर हक
लंबे समय बाद, प्रदेश में विधानसभा अध्यक्ष की अध्यक्षता में पुनर्गठित विधानसभा याचिका समिति के सामने सबसे पहले मंडी जिले के पांच परिवारों ने अपनी याचिकाएं दायर की हैं। ये परिवार 1979 में दी गई ज़मीन पर मालिकाना हक प्राप्त करने के लिए याचिका दायर कर रहे हैं। इन परिवारों को 45 साल बाद भी भूमि का अधिकार नहीं मिल सका है।
ब्यास सतलुज लिंक परियोजना से विस्थापित परिवार
मंडी जिले की बल्ह तहसील के मल्हणु गांव के पांच परिवार ब्यास सतलुज लिंक परियोजना से विस्थापित हुए थे। इन परिवारों को 1979 में राज्य सरकार द्वारा कुल 36 बीघा भूमि आबंटित की गई थी। हालांकि, इन्हें आज तक इसका आधिकारिक मालिकाना हक नहीं मिल सका है। इस भूमि के लिए आवश्यक शुल्क और वन उपज का मुआवजा पहले ही जमा किया जा चुका था, लेकिन प्रशासनिक लापरवाही के कारण इन परिवारों को अधिकार प्राप्त नहीं हो सका है।
भूमि का मालिकाना हक पाने के लिए संघर्ष
इन परिवारों को मिलने वाली भूमि अब वन भूमि के दायरे में आ चुकी है, जिससे उनके लिए अधिकार प्राप्त करना और भी कठिन हो गया है। प्रशासनिक दस्तावेज़ों की कमी और मंजूरी आदेश में देरी इन परिवारों की समस्या को और बढ़ा रही है।
न्याय की उम्मीद
मंडी के एडीएम डा. मदन कुमार ने इस मामले पर बताया कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से देख रहा है और जल्द ही इसे हल करने की उम्मीद जताई है। याचिकाकर्ताओं को अब विधानसभा याचिका समिति से न्याय मिलने की उम्मीद है।
लंबे समय से चल रहा संघर्ष
हिमाचल प्रदेश के कई इलाकों में आज भी लोग 45 साल पहले की गई जमीन के आवंटन योजनाओं के बावजूद अपने हक से वंचित हैं। इन योजनाओं के तहत कई परिवारों को कृषि और आवासीय जमीन दी गई थी, लेकिन आज भी उन्हें जमीन पर अधिकार नहीं मिल पाया है। Despite years of promises, these families are still waiting for justice.
जमीन के अधिकार की मांग
इस समस्या का मुख्य कारण प्रशासनिक अव्यवस्थाएं और संबंधित अधिकारियों द्वारा मुद्दे को नजरअंदाज किया जाना है। जो जमीनें वर्षों पहले आवंटित की गई थीं, उन पर आज भी परिवारों का कोई स्थायी अधिकार नहीं है। Many families continue to struggle with uncertainty over their land titles.
प्रशासनिक लापरवाही
कई परिवारों का कहना है कि जमीन आवंटन के बावजूद उन्हें ज़मीन का रजिस्ट्री या कानूनी अधिकार नहीं दिया गया। यह प्रशासन की लापरवाही का नतीजा है, जिससे इन परिवारों को उनके हक से वंचित रखा गया। For decades, families have been fighting for their rights, but their voices have largely been ignored.
सरकारी योजनाओं का असर
हालांकि, समय-समय पर सरकार ने इन समस्याओं के समाधान के लिए योजनाएं बनाई हैं, लेकिन सही तरीके से लागू न हो पाने के कारण इनका लाभ जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच सका। There have been numerous government schemes, but they have failed to deliver the promised land rights to the affected families.
भविष्य में समाधान की उम्मीद
इन परिवारों को अब उम्मीद है कि जल्द ही प्रशासन इस समस्या का समाधान करेगा और उन्हें उनके अधिकार मिलेंगे। The families are hopeful that the government will take swift action to resolve the land issues once and for all.