जानकारी के अनुसार गुरुवार सुबह नेरचौक अस्पताल में एक युवक को बहुत तेज पेट दर्द को लेकर भर्ती करवाया गया। चिकित्सकों द्वारा उपचार के दौरान करवाए गए टेस्ट पर तुरंत आपरेशन करने का फैसला लिया गया। करीब तीन घंटे तक चली सर्जरी में रोगी के पेट से चिकित्सकों ने फोर्क, चाकू, सूई, पेंसिल व 12 अन्य सामान निकाला गया।
नेरचौक मेडिकल कॉलेज में एक आश्चर्यजनक मामला सामने आया है, जिसे जानकर हर कोई हैरान है। जानें पूरी खबर और इस घटना के पीछे की सच्चाई।
नेरचौक मेडिकल कॉलेज में चौंकाने वाला मामला
हिमाचल प्रदेश के श्री लाल बहादुर शास्त्री मेडिकल कॉलेज, नेरचौक में एक अजीबोगरीब (bizarre) मामला सामने आया है। गुरुवार सुबह 27 वर्षीय युवक को तेज पेट दर्द (severe abdominal pain) की शिकायत पर अस्पताल लाया गया, जहां जांच के बाद डॉक्टरों ने तुरंत सर्जरी का फैसला किया।
सर्जरी के दौरान डॉक्टर भी रह गए हैरान
करीब तीन घंटे तक चली सर्जरी (three-hour-long surgery) में डॉक्टरों ने युवक के पेट से फोर्क, चाकू, सूई, पेंसिल समेत 12 अन्य वस्तुएं निकालीं। ऑपरेशन के दौरान इतनी सारी चीजें देखकर डॉक्टर भी shocked रह गए।
मानसिक बीमारी से पीड़ित था युवक
परिजनों के अनुसार, युवक मानसिक बीमारी (mental illness) से ग्रस्त है और कई वर्षों से घर पर ही रह रहा था। 2006 में पिता की मृत्यु के बाद वह अपनी मां और भाई के साथ रहता है।
पढ़ाई के दौरान बिगड़ी मानसिक स्थिति
युवक ने प्लस टू (Class 12th) की पढ़ाई पूरी करने के बाद कोचिंग के लिए चंडीगढ़ (Coaching in Chandigarh) गया था।
एक साल बाद उसकी मानसिक स्थिति (mental condition) बिगड़ गई, जिसके कारण उसे वापस घर लाना पड़ा।
तब से वह गुमसुम (withdrawn) रहता था और अधिकतर समय घर पर ही बिताता था।
सिजोफ्रेनिया के लक्षण और खतरनाक आदतें
डॉक्टरों के अनुसार, इस तरह की हरकतें (behavior) सिजोफ्रेनिया (Schizophrenia) से पीड़ित रोगियों में देखी जाती हैं।
Uncontrolled eating: वे बिना सोचे-समझे कुछ भी खा सकते हैं।
Lack of awareness: उन्हें यह भी नहीं पता होता कि वे क्या बोल रहे हैं या क्या कर रहे हैं।
Insomnia & focus issues: इन मरीजों को नींद (sleep issues) आने में दिक्कत होती है और वे किसी एक चीज़ पर ध्यान केंद्रित नहीं कर पाते।
डॉक्टरों ने दी सावधानी बरतने की सलाह
मेडिकल एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस तरह की मानसिक बीमारियों (mental disorders) से ग्रसित लोगों की निगरानी (monitoring) बेहद जरूरी है, ताकि वे खुद को नुकसान न पहुंचा सकें।