वीरभूमि हमीरपुर ने कई जांबाज योद्धा देश को दिए, लेकिन उनकी वीर गाथाएं समय के साथ धुंधली हो रही हैं। जानिए कैसे इस ऐतिहासिक धरोहर को सहेजने की जरूरत है।
सरहदों की रक्षा में हंसते-हंसते हुए बलिदान
यह वीरभूमि हमीरपुर है, जिसने देश की आन-बान और शान के लिए अपने लाल सरहदों की रखवाली के लिए भेजे। बाद में वे तिरंगे में लिपटे हुए लौटे। इस भूमि की कई माताओं ने बेटे खोए, बहनों ने भाई, और वीर नारियों को अपने माथे का सिंदूर मिटाना पड़ा। लेकिन दुर्भाग्यवश, प्रदेश की सरकारों को कुछ खास मौकों के अलावा कभी उनकी याद नहीं आई।
War Memorial की अधूरी कहानी
हमीरपुर में शहीदों की यादों को संजोने के लिए एक समर्पित War Memorial की वर्षों से जरूरत थी। पक्का भरो के पास पहले चिन्हित जगह को बदलकर शहर के किनारे वार्ड नंबर-2 में शहीद मृदुल पार्क को वार मेमोरियल बनाने का फैसला हुआ। लेकिन साढ़े तीन साल बाद भी यहां सिर्फ एक शहीद की प्रतिमा और कुछ अधूरी सीढ़ियां नजर आती हैं।
सरकारों की घोषणाएं और अधूरे वादे
26 जुलाई, 2022 को करगिल विजय दिवस पर तत्कालीन मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने 70 लाख के बजट के साथ वार मेमोरियल के विस्तार की घोषणा की थी। हालांकि, PWD को सौंपे गए इस प्रोजेक्ट में 20 लाख खर्च होने की बात कही जा रही है, लेकिन काम अधूरा ही है।
हमीरपुर सदर विधायक की चिंता
विधायक आशीष शर्मा का कहना है कि वार मेमोरियल का निर्माण बहुत जरूरी है। अगर budget constraints के कारण यह प्रोजेक्ट रुका है, तो यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। उन्होंने इस मुद्दे को मुख्यमंत्री के सामने भी उठाया है।
हर घर से एक फौजी: दुधला गांव की मिसाल
हमीरपुर जिले में हर पांचवें घर से एक फौजी सेना में सेवाएं दे रहा है। टौणीदेवी क्षेत्र के दुधला गांव में तो हर घर से एक जवान सेना में भर्ती हुआ है। यहां तीन दर्जन घर हैं, और हर घर ने एक सपूत देश की रक्षा के लिए समर्पित किया है।
367 वीरों ने दी शहादत
आजादी के बाद से अब तक हमीरपुर जिले के 367 वीर जवानों ने देश की रक्षा करते हुए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। 1962 Indo-China War से लेकर अब तक लगभग 10 युद्धों में हमीरपुर के जवानों ने शौर्य और पराक्रम की मिसाल पेश की है।