हिमाचल में भाजपा के लिए धवाला की बगावत नई मुश्किलें खड़ी कर सकती है। जानिए, कैसे उनकी सियासी ज्वाला पार्टी पर भारी पड़ सकती है
धवाला की सियासी ज्वाला से बीजेपी के लिए नई चुनौती
पूर्व मंत्री रमेश धवाला की राजनीतिक रणनीति भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। देहरा में पार्टी के अधिकृत मंडलों के समानांतर संरचनात्मक मंडलों (Parallel Organizational Bodies) के अध्यक्ष बनाकर धवाला ने पुराने कार्यकर्ताओं को एकजुट (Mobilize) करना शुरू कर दिया है। हालांकि, भाजपा ने बड़ी संख्या में सदस्यता (Membership Drive) करके अपना संगठन मजबूत कर लिया है, लेकिन देहरा और ज्वालामुखी सहित ओबीसी बहुल क्षेत्रों (OBC Dominated Areas) में रमेश धवाला का खासा प्रभाव है, जो विपक्ष में बैठी बीजेपी की मुश्किलें बढ़ा सकते हैं।
धवाला और हाशिए पर बैठे नेताओं से भाजपा की दूरी
फिलहाल भाजपा न तो धवाला सहित अन्य वरिष्ठ नेताओं के लिए कोई कार्य (Responsibility) तलाश पाई है और न ही उनसे समन्वय (Coordination) कर पाई है। प्रदेश में कई वरिष्ठ नेता जो कई बार विधायक या मंत्री रह चुके हैं, वे फिलहाल पार्टी में निष्क्रिय (Inactive) हैं। इससे कई विधानसभा क्षेत्रों (Assembly Constituencies) में गुटबाजी (Factionalism) बढ़ रही है, जो भविष्य में पार्टी के लिए एक बड़ा संकट (Major Crisis) बन सकती है।
क्या भाजपा के भीतर कोई अंदरूनी समर्थन है?
राजनीतिक विश्लेषकों (Political Experts) का मानना है कि रमेश धवाला अकेले इतने बड़े कदम (Big Move) नहीं उठा सकते, बल्कि उनके पीछे भाजपा के ही वरिष्ठ या हाशिए पर चल रहे नेता हो सकते हैं। इससे पहले कृपाल परमार भी भाजपा के नाराज नेताओं (Disgruntled Leaders) के साथ बैठकें (Meetings) कर चुके हैं और पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल चुके हैं।
अब सवाल यह है कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा (BJP National President JP Nadda) के अपने गृह राज्य में ही पार्टी बागियों (Rebels) से कैसे निपटेगी? क्या भाजपा समन्वय (Reconciliation) कर सभी को साथ लेकर चलेगी या फिर इन नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया जाएगा?
भाजपा के लिए दोहरी चुनौती
भाजपा एक ओर कांग्रेस नेताओं (Congress Leaders) को तोड़कर अपने संगठन का विस्तार (Expansion) कर रही है, लेकिन दूसरी ओर अपने ही वरिष्ठ नेताओं को साथ लेकर चलने में विफल नजर आ रही है। यह भाजपा के लिए बड़ी सियासी चुनौती (Political Challenge) साबित हो सकता है।
कांग्रेस में भी उबाल, बढ़ा सियासी पारा
सिर्फ भाजपा ही नहीं, बल्कि कांग्रेस पार्टी (Congress Party) में भी संगठन चुनाव (Organizational Elections) और सरकार में मनमाफिक काम (Favorable Decisions) न होने के कारण असंतोष (Dissatisfaction) बढ़ रहा है। खासकर कांगड़ा जिले (Kangra District) से आवाजें उठने लगी हैं।
हाल ही में पूर्व CPS नीरज भारती (Former CPS Neeraj Bharti) के बयानों ने राजनीतिक हलकों (Political Circles) में हलचल मचा दी थी। बोर्ड और निगमों (Boards & Corporations) में खाली पड़े पदों पर नियुक्तियों (Appointments) और बड़ी परियोजनाओं (Mega Projects) को लेकर राजनीतिक खींचतान (Political Struggle) तेज हो गई है।
2027 से पहले गरमाने लगी हिमाचल की राजनीति
हालात यह संकेत दे रहे हैं कि हिमाचल प्रदेश की राजनीति (Himachal Politics) 2027 के चुनावों से पहले ही गर्म (Heated Up) होने लगी है। दोनों मुख्य दल (BJP & Congress) अंदरूनी चुनौतियों से जूझ रहे हैं, जिससे आने वाले समय में बड़ा सियासी उलटफेर (Political Turmoil) देखने को मिल सकता है।