हिमाचल प्रदेश अब केंद्रीय करों में अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार से मजबूत मांग करेगा। राज्य सरकार का कहना है कि भौगोलिक परिस्थितियों और सीमित संसाधनों को देखते हुए प्रदेश को ज्यादा हिस्सा मिलना चाहिए।
घाटा कम करने को हिमाचल अब मांगेगा केंद्रीय करों में ज्यादा हिस्सा
कमाई और खर्चों के बीच लगातार बढ़ते अंतर और बजट घाटे को देखते हुए हिमाचल प्रदेश सरकार अब अनुदान के बजाय केंद्रीय करों में हिस्सेदारी बढ़ाने की लड़ाई लड़ने जा रही है। सरकार का फोकस अब 16वें वित्त आयोग की सिफारिशों पर है, जो अगले वित्त वर्ष से लागू होंगी।
मुख्यमंत्री सुक्खू रखेंगे एडिशनल मेमोरेंडम
राज्य सरकार की ओर से मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू अगले महीने वित्त आयोग के समक्ष एक अतिरिक्त मेमोरेंडम (एडिशनल मेमोरेंडम) के साथ पेश होंगे। इससे पहले 25 जून 2024 को आयोग के शिमला दौरे पर एक मेमोरेंडम पहले ही दिया जा चुका है।
केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के फार्मूले को चुनौती
हिमाचल को वर्तमान में केंद्रीय करों के कॉमन पूल से 0.83% हिस्सेदारी मिलती है, लेकिन अब राज्य सरकार इस फार्मूले को चुनौती दे रही है। तीन नए तर्कों के साथ राज्य ने हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग की है।
जंगलों से देश को 90,000 करोड़ की सेवाएं, फिर भी अनदेखी
राज्य सरकार इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमेंट, भोपाल की रिपोर्ट के आधार पर दावा कर रही है कि हिमाचल हर साल देश को जंगलों के माध्यम से 90,000 करोड़ रुपये की इकोलॉजिकल सेवाएं देता है। इसके बावजूद स्नोबाउंड इलाकों को गणना में शामिल नहीं किया जा रहा।
अच्छे प्रदर्शन की सजा क्यों?
सरकार का दूसरा बड़ा तर्क यह है कि अगर हिमाचल के शिक्षा, स्वास्थ्य और प्रति व्यक्ति आय जैसे इंडिकेटर अन्य राज्यों से बेहतर हैं, तो उसे “सजा” नहीं मिलनी चाहिए। ऐसे में वित्त आयोग को राज्यों के बीच संतुलन बनाना होगा।
राजस्व घाटा अनुदान पर भी उठाए सवाल
तीसरा तर्क राजस्व घाटा अनुदान को लेकर है। राज्य का कहना है कि उसे यह अनुदान भी सीमित रूप से मिल रहा है, जबकि उसकी जरूरत कहीं ज्यादा है।
सीएम के नेतृत्व में बनी स्पेशल कमेटी
मुख्यमंत्री सुक्खू ने एडिशनल मेमोरेंडम तैयार करने के लिए एक विशेष समिति बनाई है। इसे मुख्यमंत्री के प्रधान सलाहकार रामसुभाग सिंह देख रहे हैं। कमेटी में वरिष्ठ अधिकारी जैसे कमलेश कुमार पंत, देवेश कुमार, बसु सूद और राकेश कंवर शामिल हैं। यह टीम सीधे सीएम को रिपोर्ट कर रही है।
क्यों जरूरी है टैक्स में हिस्सेदारी बढ़ाना?
हिमाचल का सालाना बजट करीब 58,000 करोड़ का है, लेकिन टैक्स और नॉन टैक्स मिलाकर कुल कमाई लगभग 18,000 करोड़ है। केंद्र से मिलने वाली ग्रांट और हिस्सेदारी मिलाकर कुल राजस्व 43,000 करोड़ ही होता है, जबकि खर्च 60,000 करोड़ के करीब है। 7,000 करोड़ का यह गैप केवल केंद्र की ओर से अतिरिक्त मदद से ही पूरा हो सकता है।