हिमाचल प्रदेश में एक ताया ने अपने भतीजे को पढ़ाया-लिखाया, अच्छी नौकरी तक पहुंचाया, लेकिन जब वह चिट्टे के नशे में फंस गया तो जिम्मेदारी निभाते हुए खुद उसे थाने ले गया। जानिए इस भावुक और सच्ची कहानी के पीछे का दर्द।
सात साल की उम्र में अनाथ, ताया बना सहारा
साल 2003 में पिता और 2007 में मां के निधन के बाद तीन बच्चों के सिर से माता-पिता का साया उठ गया। दो बहनों और एक भाई को ताया ने अपने परिवार में जगह दी। ताया ने बच्चों को संभाला, बहनों की शादी करवाई और भतीजे को पढ़ाया-लिखाया।
आईटीआई से लेकर नौकरी तक, लेकिन फिर बिगड़ा सब कुछ
ताया ने भतीजे को आईटीआई तक पढ़ाया। वह एक निजी कंपनी में नौकरी के करीब था, लेकिन तभी वह चिट्टे के नशे में फंस गया। धीरे-धीरे उसने नशा तस्करी भी शुरू कर दी।
ताया का दर्द: दिल पर पत्थर रखकर पहुंचा थाने
नशे में फंसे भतीजे को बचाने के लिए ताया ने पहले पंचायत से मदद ली, लेकिन जब हालात नहीं बदले तो वह खुद पुलिस चौकी पहुंच गया और शिकायत दर्ज करवाई। ताया का उद्देश्य था कि उसका भतीजा सुधर जाए, चाहे इसके लिए उसे थाने ही क्यों न ले जाना पड़े।
घर से पकड़ा गया, पहले भी जा चुका है जेल
एक महीने पहले ताया ने भतीजे की हालत देखकर पुलिस को सूचित किया था। अब युवक को चिट्टे की खेप के साथ घर से गिरफ्तार किया गया है। इससे पहले वह पंजाब में चिट्टा तस्करी के मामले में सजा काट चुका है।
सुधारने की कोशिशें, लेकिन नशे ने जीत लिया
जेल से लौटने के बाद ताया और परिवार ने दोबारा उसकी ज़िंदगी संवारने की कोशिश की। उसे हमीरपुर के संस्थान में होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई में दाखिला दिलवाया गया। मगर नशे की लत इतनी हावी रही कि वह पढ़ाई छोड़कर फिर से तस्करी में लग गया।
एक महीने में एक लाख का चिट्टा खुद पी गया
युवक को चिट्टे की गंभीर लत है। पुलिस के मुताबिक वह एक महीने में करीब एक लाख रुपये का चिट्टा खुद ही सेवन कर चुका है। इसी लत को पूरा करने के लिए वह फिर तस्करी की ओर गया और तीसरी बार भारी मात्रा में चिट्टा लेकर पकड़ा गया।
⚖️ नशा रोकने के लिए तस्करी करने वालों को समझाना जरूरी
पुलिस का कहना है कि कई आरोपी ऐसे हैं जो सिर्फ अपनी नशे की ज़रूरतें पूरी करने के लिए तस्करी करते हैं। ऐसे युवाओं को सुधारने और नशे से बाहर निकालने के लिए काउंसलिंग और जागरूकता जरूरी है। पुलिस लगातार इस दिशा में प्रयास कर रही है।