बिना खेत जोते आलू की खेती: सौरव शर्मा की तकनीक से कम खर्च में आएगी खुशहाली

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अब किसानों को आलू की खेती के लिए खेत जोतने का झंझट, ज़्यादा लेबर का खर्च और पानी की लागत भी कम होगी। प्रदेश में आलू उगाने को लेकर इस नई तकनीक से आलू उत्पादकों को बेहतर मुनाफा मिल सकेगा और फसल उगाने में किसानों का कम खर्चा भी होगा। वहीं फसल की बंपर पैदावार से किसान आत्मनिर्भर बनेंगे।सौरव शर्मा की नई तकनीक से बिना खेत जोते आलू की खेती संभव होगी। इस तरीके से labour और पानी पर खर्च में कमी आएगी, जिससे किसानों को मिलेगी खुशहाली और बेहतर फसल।

हिमाचल के साइंटिस्ट ने बिना खेत जोते पराली में आलू उगाने की क्रांतिकारी तकनीक विकसित की

हिमाचल प्रदेश के एक कृषि वैज्ञानिक ने बिना खेत जोते पराली में आलू उगाने की नई तकनीक विकसित की है, जिससे किसानों को अब खेत जोतने और ट्रैक्टर के खर्च की आवश्यकता नहीं होगी। यह तकनीक आलू उत्पादकों के लिए सीधे लाभकारी साबित होगी। अब किसानों को आलू की खेती में ज्यादा labour, पानी, और जुताई के खर्च की चिंता नहीं रहेगी।

किसानों के लिए कम खर्च, अधिक मुनाफा

इस नई तकनीक से आलू उत्पादकों को बेहतर मुनाफा मिलेगा, क्योंकि फसल के उत्पादन में कम खर्च और कम मेहनत की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, फसल की बंपर पैदावार से किसान आत्मनिर्भर बनेंगे। कृषि अनुसंधान केंद्र अकरोट के वैज्ञानिक डा. सौरव शर्मा ने इस रिसर्च को सफलतापूर्वक पूरा किया है, जो किसानों के लिए एक गेम-चेंजर साबित होगा।

पराली में आलू की खेती का अनोखा तरीका

डा. सौरव शर्मा के अनुसार, इस तकनीक में आलू के उत्पादन के लिए पराली का उपयोग किया जाएगा। इसमें किसानों को खेत में मेंढ और नाली बनाने की जरूरत नहीं होगी, और आलू पर मिट्टी चढ़ाने की भी आवश्यकता नहीं होगी। साथ ही, खरपतवारनाशी जैसे हानिकारक रसायनों का छिड़काव भी नहीं करना पड़ेगा, क्योंकि पराली से मल्चिंग करने पर खरपतवार नहीं उग पाएंगे।

सराहना: DC ऊना और विधायक सुदर्शन बबलू का समर्थन

इस नई रिसर्च को ऊना के DC जतिन लाल ने भी सराहा है। इसके अलावा, चिंतपूर्णी के विधायक सुदर्शन बबलू ने भी डा. सौरव शर्मा के प्रयासों की प्रशंसा की है, इसे किसानों के लिए एक बड़ी उपलब्धि बताया है।

आलू की बिजाई की सरल प्रक्रिया

इस तकनीक के तहत आलू के बीज को नमीयुक्त खेत में रखकर पराली से ढक दिया जाता है। फिर समय-समय पर फसल को पानी दिया जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार, इस तरीके से आलू की फसल को केवल तीन बार ही पानी की आवश्यकता होती है, जो किसानों के लिए एक बड़ा फायदा है।

पर्यावरण के लिए भी फायदेमंद

यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी लाभकारी है, क्योंकि इससे पराली जलाने की जरूरत नहीं होगी, जिससे प्रदूषण भी कम होगा और भूमि की सेहत भी बनी रहेगी।

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