हिमाचल प्रदेश की अफसरशाही ने सरकार को पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) से पीछे हटने का सुझाव दिया है, यह चेतावनी देते हुए कहा कि यदि ऐसा नहीं किया गया तो राज्य के आर्थिक प्रबंधन में गंभीर चुनौतियाँ आ सकती हैं। इसके बावजूद, मुख्यमंत्री सुक्खू ओपीएस से पीछे हटने के पक्ष में नहीं हैं, क्योंकि यह कांग्रेस की पहली गारंटी है और इसे सामाजिक सुरक्षा का महत्वपूर्ण मुद्दा माना जा रहा है।
राज्य सचिवालय में भी इस विषय पर गंभीर मंथन हो रहा है। प्रदेश सरकार पर बढ़ते कर्ज, केंद्र सरकार की ओर से कई योजनाओं के वित्तपोषण में सीलिंग लगाने और विकास योजनाओं के लिए बजट की कमी के बीच अफसरशाही ने भविष्य के संकट से उबरने के लिए यह सुझाव दिया है। सूत्रों के अनुसार शीर्ष अधिकारी मुख्यमंत्री से इस विषय को लगातार उठा रहे हैं। प्रदेश की आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए कुछ कड़े फैसले लेने की सलाह दी है। अधिकारियों का यह भी तर्क है कि केंद्र ने ओपीएस को लागू करने की हलचल के बीच ही कई तरह की पाबंदियां लगा दी हैं। एनपीएस कर्मचारियों के करीब 9,000 करोड़ रुपये केंद्र के पास फंसे हैं। आपदा से भी हिमाचल प्रदेश में बहुत नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए केंद्र से 10 हजार करोड़ रुपये मांगे गए थे, जो नहीं मिले हैं
हिमाचल प्रदेश में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) को लेकर एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है। अफसरशाही ने सरकार को सुझाव दिया है कि राज्य की आर्थिक स्थिति को सुधारने के लिए ओपीएस से पीछे हटना जरूरी है। अफसरों का मानना है कि अगर ओपीएस को जारी रखा गया तो आने वाले समय में कर्मचारियों के वेतन और अन्य वित्तीय देनदारियों को पूरा करना मुश्किल हो सकता है।
महंगाई भत्ते और नए वेतनमान का एरियर देने की मांग कर रहे कर्मचारी संगठनों के प्रदर्शनों के बीच यह सुझाव आया है। अफसरों का कहना है कि अगर सरकार ने फौरन कदम नहीं उठाए तो आर्थिक प्रबंधन में गंभीर समस्याएँ पैदा हो सकती हैं।
हालाँकि, मुख्यमंत्री सुक्खू इस सुझाव से सहमत नहीं हैं। उनका तर्क है कि कांग्रेस की पहली गारंटी होने और इसे एक सामाजिक सुरक्षा के मुद्दे के रूप में देखते हुए, ओपीएस से पीछे हटना सही नहीं होगा। वे अन्य वित्तीय समाधान तलाशने की बात कर रहे हैं, जिससे कि राज्य की अर्थव्यवस्था और कर्मचारियों के हितों दोनों का संतुलन बना रहे।
इस मुद्दे पर लगातार चर्चा जारी है, लेकिन मुख्यमंत्री का रुख स्पष्ट है कि ओपीएस को लेकर वे किसी भी प्रकार की रियायत देने के पक्ष में नहीं हैं।