हिमाचल में शिक्षा सुधार: नो रिटेंशन पॉलिसी पर पुनर्विचार

हिमाचल में शिक्षा सुधार: नो रिटेंशन पॉलिसी पर पुनर्विचार
हिमाचल प्रदेश शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए दिसंबर में होने वाले परख परीक्षा से पहले “फेल न करने की नीति” का समाधान खोजने की तैयारी कर रहा है। राइट टू एजुकेशन एक्ट के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक बच्चों को खराब प्रदर्शन के बावजूद पास करना पड़ता है। इसका परिणाम यह है कि छात्रों के सीखने का स्तर तेजी से गिर रहा है। इस नीति के कारण न बच्चों में फेल होने का डर है, न शिक्षकों की जवाबदेही तय हो रही है, और न ही अभिभावकों को बच्चों के फेल होने की चिंता। इसके चलते नौवीं कक्षा में पहुंचने पर भी कई छात्र चौथी कक्षा का गणित तक नहीं कर पाते।

प्रदेश में हर साल 12.50 लाख छात्र स्कूली शिक्षा का हिस्सा बनते हैं, लेकिन कमजोर नींव के कारण आगे के परिणाम निराशाजनक रहते हैं। गुणवत्ता में गिरावट का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नेशनल अचीवमेंट सर्वे में हिमाचल, जो पहले नंबर पर था, अब 18वें स्थान पर खिसक गया है। सरकारी स्कूलों में नामांकन भी लगातार घट रहा है।

हाल ही में शिमला में समग्र शिक्षा द्वारा आयोजित तीन दिवसीय कार्यशाला में निष्कर्ष निकाला गया कि “नो रिटेंशन पॉलिसी” नुकसानदेह साबित हो रही है। सुधार के सुझावों में मुख्य रूप से तीसरी, पांचवीं और आठवीं कक्षाओं में कमजोर प्रदर्शन करने वाले बच्चों को फेल करना शामिल है। साथ ही, मूल्यांकन प्रक्रिया को मजबूत बनाकर प्रत्येक चरण पर लर्निंग लेवल की जांच सुनिश्चित की जाएगी।

शिक्षा सचिव राकेश कंवर ने बताया कि “नो रिटेंशन पॉलिसी” को समाप्त करने का उद्देश्य जबरदस्ती बच्चों को फेल करना नहीं है, बल्कि शिक्षण और मूल्यांकन में सुधार लाना है। बच्चों के प्रगति कार्ड में उनके अंक दर्ज होंगे, ताकि शिक्षक और अभिभावक दोनों को बच्चे के प्रदर्शन की स्पष्ट जानकारी हो। इस प्रस्ताव पर समग्र शिक्षा विभाग काम कर रहा है।

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