टीएमसी (तृणमूल कांग्रेस) की लापरवाही के कारण एक नर्स की जान संकट में आ गई। यह मामला हाल ही में सुर्खियों में आया है और इस पर गंभीर चिंता जताई जा रही है।
डा. राजेंद्र प्रसाद राजकीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा महाविद्यालय, टांडा के अस्पताल में लापरवाही के कारण एक नर्स की जान जोखिम में पड़ गई। बुधवार को टांडा अस्पताल के आर्थो ऑपरेशन थियेटर में 92 वर्षीय हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव मरीज के ऑपरेशन के दौरान एक आउटसोर्स नर्स को हाथ की अंगुली में नीडल प्रिक इंजरी हो गई।
सही समय पर इलाज न मिलने के कारण:
नीडल प्रिक इंजरी के बाद, नर्स को हेपिटोलॉजी विभाग में भेजा गया, जहां उसने पूरा दिन इंजेक्शन के लिए दर-दर भटकते हुए गुजारा। न तो उसे अस्पताल में दाखिल किया गया और न ही आवश्यक एचबीवी इम्यूनो ग्लोबुलिन (एचबीआईजी) इंजेक्शन दिया गया। यह इंजेक्शन 48 से 72 घंटे के अंदर लगाना अनिवार्य होता है, अन्यथा हेपेटाइटिस बी पॉजिटिव संक्रमण के संपर्क में आने वाले की जान जा सकती है।
इंजेक्शन प्राप्त करने की प्रक्रिया:
गुरुवार को, एनजीओ और नर्सिंग एसोसिएशन के सहयोग से नर्स को 30 घंटे बाद एचबीवी इम्यूनो ग्लोबुलिन एचबीआईजी इंजेक्शन मिला। एनजीओ और नर्सिंग एसोसिएशन ने पैसे इकट्ठा कर इंजेक्शन को प्राइवेट मेडिकल स्टोर से खरीदा। गनीमत यह रही कि इंजेक्शन 53 मील के मेडिकल स्टोर में उपलब्ध हो गया, अन्यथा इसे चंडीगढ़ या अन्य स्थान से मंगवाना पड़ता।
स्वास्थ्य सेवाओं पर प्रश्नचिन्ह:
इस घटना ने हेपिटोलॉजी विभाग और अस्पताल की स्वास्थ्य सेवाओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। विभाग पर यह सवाल उठ रहा है कि 30 घंटे तक नर्स को इंजेक्शन क्यों नहीं लगाया गया और क्या अस्पताल में ऐसे महत्वपूर्ण इंजेक्शन उपलब्ध नहीं हैं। टांडा अस्पताल में रोजाना 14 ऑपरेशन थियेटर में 30 से ज्यादा ऑपरेशन्स होते हैं, और नीडल प्रिक इंजरी किसी के साथ भी हो सकती है।
एनजीओ और नर्सिंग एसोसिएशन की प्रतिक्रिया:
नर्सिंग एसोसिएशन की जनरल सेक्रेटरी ने बताया कि नीडल प्रिक इंजरी के बाद स्टाफ नर्स को एडमिशन के लिए हेपिटोलॉजी विभाग में भेजा गया था, लेकिन एडमिशन नहीं हो सका। एनजीओ अध्यक्ष राजीव समकडिय़ा ने भी बताया कि नर्स को डॉक्टरों की देखरेख में इलाज और इंजेक्शन मिलना चाहिए था।
निष्कर्ष:
इस घटना ने अस्पताल की स्वास्थ्य प्रबंधन प्रणाली में सुधार की आवश्यकता को उजागर किया है, ताकि भविष्य में ऐसी लापरवाहियों से बचा जा सके और मरीजों और स्टाफ की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।