वन अनुसंधान संस्थान और वन विभाग मिलकर वन समस्याओं को कम करें

वन अनुसंधान संस्थान-वन विभाग मिलकर कम करें वन समस्याएं

वन अनुसंधान संस्थान और वन विभाग ने मिलकर वन समस्याओं का समाधान करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाने का निर्णय लिया है। यह साझेदारी वन सुरक्षा, वनीकरण, और वन्यजीव संरक्षण जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगी।

विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों संस्थानों के सहयोग से वन प्रबंधन की नई तकनीकों को लागू किया जा सकेगा, जिससे वन क्षेत्रों में पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, स्थानीय समुदायों को भी वन संरक्षण के कार्यों में शामिल किया जाएगा, ताकि वे अपनी जीवनशैली को सुधार सकें और वन संपदा का sustainable उपयोग कर सकें।

इस सहयोग के तहत विभिन्न कार्यक्रमों और कार्यशालाओं का आयोजन किया जाएगा, जिसमें वन संरक्षण के तरीकों, अनुसंधान और तकनीकी विकास पर चर्चा होगी। इससे न केवल वन समस्याओं का समाधान होगा, बल्कि स्थानीय लोगों के बीच जागरूकता भी बढ़ेगी।

क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र जाच्छ (नूरपुर) में गुरुवार को हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान, शिमला द्वारा नूरपुर वन मंडल के वन अधिकारियों, कर्मचारियों और फील्ड स्टाफ के लिए शीशम के प्रबंधन पर एकीकृत दृष्टिकोण पर वैज्ञानिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

इस कार्यक्रम में डीएफओ नूरपुर, अमित शर्मा ने मुख्य अतिथि के रूप में भाग लिया, जबकि क्षेत्रीय बागबानी अनुसंधान एवं प्रशिक्षण केंद्र जाच्छ के सह निदेशक, डा. विपिन गुलेरिया ने विशिष्ट अतिथि के रूप में शिरकत की। डा. अश्वनी तपवाल, वरिष्ठ वैज्ञानिक और प्रशिक्षण कार्यक्रम के समन्वयक ने सभी अतिथियों का स्वागत किया।

यह प्रशिक्षण शीशम को प्रभावित करने वाले रोगों और रोगजनकों के प्रबंधन, साथ ही क्लोनल प्रोपेगेशन द्वारा पौधशाला तैयार करने पर केंद्रित था। डीएफओ अमित शर्मा ने अपने उद्घाटन भाषण में बताया कि समय रहते वनों और पौधशालाओं में रोगों की पहचान करने से भविष्य में होने वाले प्रकोपों से बचा जा सकता है।

उन्होंने प्रतिभागियों को पर्यावरण हितैषी प्रबंधन के माध्यम से पौध रोगों के निवारण की सलाह दी और भविष्य में हिमालयन वन अनुसंधान संस्थान और वन विभाग के सहयोग से वन संबंधी समस्याओं के समाधान पर जोर दिया।

डा. तपवाल ने बताया कि पेड़-पौधों पर रोग फैलाने वाले कवक वन पारिस्थितिकी के लिए गंभीर खतरा हैं, जिससे बड़े पैमाने पर पेड़ों की मृत्यु और जैव विविधता संतुलन में गड़बड़ी हो सकती है। उन्होंने जैव कवकनाशी तैयार करने और उपयोग करने की विधि भी साझा की।

डा. विपिन गुलेरिया ने जैव उर्वरकों और जैव कीटनाशकों के उपयोग को फसलों की जैविक खेती के लिए लागत प्रभावी, पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ समाधान बताया। उन्होंने प्रतिभागियों को रोग प्रबंधन के लिए पर्यावरण के अनुकूल साधनों को अपनाने की सलाह दी।

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